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च॒त्वार॑ ईं बिभ्रति क्षेम॒यन्तो॒ दश॒ गर्भं॑ च॒रसे॑ धापयन्ते। त्रि॒धात॑वः पर॒मा अ॑स्य॒ गावो॑ दि॒वश्च॑रन्ति॒ परि॑ स॒द्यो अन्ता॑न् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

catvāra īm bibhrati kṣemayanto daśa garbhaṁ carase dhāpayante | tridhātavaḥ paramā asya gāvo divaś caranti pari sadyo antān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

च॒त्वा॑रः। ई॒म्। बि॒भ्र॒ति॒। क्षे॒म॒ऽयन्तः॑। दश॑। गर्भ॑म्। च॒रसे॑। धा॒प॒य॒न्ते॒। त्रि॒ऽधात॑वः। प॒र॒माः। अ॒स्य॒। गावः॑। दि॒वः। च॒र॒न्ति॒। परि॑। स॒द्यः। अन्ता॑न् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:47» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को चाहिये कि पृथिवी आदि तत्त्व जगत् के पालक हैं, ऐसा जानें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अस्य) इस संसार के मध्य में (चरसे) चलने को (क्षेमयन्तः) रक्षा करते हुए (परमाः) प्रकृष्ट (त्रिधातवः) तीन सत्त्व, रज और तमोगुण धारण करनेवाले जिनके वे और (चत्वारः) चार पृथिवी आदि (ईम्) सब ओर से (गर्भम्) समस्त जगत् उत्पत्ति के स्थान को (बिभ्रति) धारण करते हैं तथा (दश) दश दिशाओं को (धापयन्ते) धारण कराते हैं और (सद्यः) शीघ्र (दिवः) प्रकाश के मध्य में (अन्तान्) समीपवर्ती देशों के (गावः) किरणें (परि, चरन्ति) चारों और चलते हैं, ऐसा जानिये ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! इस संसार के धारण करनेवाले पृथिवी, जल, तेज और पवन हैं और वे कारण से उत्पन्न हो के उपयुक्त होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः पृथिव्यादीनि तत्वानि जगत्पालनानि सन्तीति वेद्यमित्याह ॥४॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! अस्य जगतो मध्ये चरसे क्षेमयन्तः परमास्त्रिधातवश्चत्वार ईं गर्भं बिभ्रति दश धापयन्ते सद्यो दिवोऽन्तान् गावः परि चरन्तीति वि जानीत ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (चत्वारः) पृथिव्यादयः (ईम्) सर्वतः (बिभ्रति) धरन्ति (क्षेमयन्तः) रक्षयन्तः (दश) दिशः (गर्भम्) सर्वजगदुत्पत्तिस्थानम् (चरसे) चरितुं गन्तुम् (धापयन्ते) धारयन्ति (त्रिधातवः) त्रयः सत्त्वरजस्तमांसि धातवो धारका येषान्ते (परमाः) प्रकृष्टाः (अस्य) गावः किरणाः (दिवः) प्रकाशस्य मध्ये (चरन्ति) गच्छन्ति (परि) (सद्यः) शीघ्रम् (अन्तान्) समीपस्थान् देशान् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! अस्य जगतो धारकाः पृथिव्यप्तेजोवायवः सन्ति ते च कारणादुत्पद्य उपयुक्ता भवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! या जगाचे धारक पृथ्वी, जल, तेज व वायू आहेत. ते कारणापासून उत्पन्न झालेले असून उपयुक्त असतात. ॥ ४ ॥